श्राद के 3 धाम
श्राद के 3 धाम -
3 places of Shradh- श्राद के 3 धाम हर साल आश्विन मास के
कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक के पंद्रह दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है और
यह समय सिर्फ पितरों के पूजन और तर्पण के
लिए सुनिश्चित होता है. कहा जाता है कि इस समय पूर्वजों के स्मरण से न केवल उनकी
आत्मा को तृप्ति मिलती है बल्कि वे
संतुष्ट होकर आशीर्वाद भी देते हैं. तो करें 3 ऐसे ही धाम के दर्शन जहां पितृपक्ष
में श्राद्ध व तर्पण करने से व केवल पितर संतुष्ट होंगे बल्कि सुख-समृद्धि धन व
ऐश्वर्य से भर देंगे घर
गया, पुष्कर, वाराणसी
गया धाम
वैदिक परंपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से
श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक एक पुत्र का जीवन
तभी सार्थक माना जाता है जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करें और
उनके मरने के बाद उनका विधिवत श्राद्ध करें.
ऐसे तो देश में हरिद्वार, गंगासागर, कुरूक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थानों में भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो भगवान राम ने भी किया है. कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था. आचार्यों के मुताबिक लोगों में यह आम धारणा है कि एक परिवार में से कोई एक व्यक्ति ही `गया` करता है. गया करने का मतलब है कि गया में पितरों को श्राद्ध करना, पिंडदान करना. गरुड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों को स्वर्ग की ओर ले जाने के लिए एक-एक सीढ़ी की तरह बनते जाते हैं . गया को विष्णु का नगर माना गया है. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है. विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और उन्हें स्वर्ग में वास मिलता है. माना जाता है कि गया में स्वयं विष्णु पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे `पितृ तीर्थ` भी कहा जाता है. 3 places of Shradh
पुष्कर
गया के बाद जानें पुष्कर के बारे में. यहां आकर ब्रह्म
सरोवर में डुबकी लगाना और अपने पितरों के लिए पूजा अर्चना करने का सौभाग्य जिसे मिल गया उसका जीवन सवंरते देर नहीं
लगती जयपुर से 150 किमी पर बसा पुष्कर जहां कदम रखते ही मन एक अनोखी शांति से भर
जाता है. जहां पहुंचकर न केवल परमपिता ब्रह्मा के इकलौते मंदिर के दर्शनों का सौभाग्य मिलता है
बल्कि दूर तक फैले पवित्र ब्रह्म सरोवर के दर्शन से भक्तों को मिल जाता है मोक्ष. दुनिया भर से लोग यहां स्नान करके पुण्य कमाने
ही नहीं बल्कि अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध करने भी आते हैं क्योंकि
पौराणिक मान्याताओं में पुष्कर को मृत्यु लोक के सबसे बड़े पवित्र तीर्थों में से
एक माना गया है और यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान भारी संख्या में
श्रद्धालु ब्रह्म सरोवर के किनारे अपने पितरो की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति
के लिए विधि-विधान से पिडंदान व तपर्ण करते हैं
वाराणसी
वाराणसी में बना है मां लक्ष्मी का ये पावन
धाम. कहते हैं जब पितृपक्ष में जब सभी
देवता शयन के लिए चले जाते हैं, तब वाराणसी में मां लक्ष्मी अकेली ऐसी देवी हैं जो जाग्रत
रहती हैं और भक्तो पर लुटाती हैं अपनी कृपा. यहां मां नारायण के बिना विराजती हैं
और शिवभक्तों के लिए खोल देती हैं खजाने का द्वार. जिसे जितना चाहिए होता है, उसे मां बिना कुछ कहे दे देती हैं. वाराणसी में मां लक्ष्मी
के मंदिर के ठीक सामने एक सरोवर भी है जिसके पावन जल का स्पर्श कर भक्त लेते हैं
मां का आशीर्वाद. लेकिन सबसे अनोखा है यहां का प्रसाद. पूजा के बाद भक्त प्रसाद के
रुप में मां का मुखौटा खरीद कर घर ले जाते हैं और 16 दिन तक करते हैं पूजा.
मान्यता है कि ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. पितृपक्ष के पूरे 16 दिन काशी में मां लक्ष्मी के मंदिर में भक्तों की भारी भीड़
उमड़ती है. कहते हैं इन 16 दिनों में जिसने मां के आगे मत्था टेक दिया, उसे फिर कहीं और जाने की जरूरत नहीं रहती. खाली हाथ आने
वाले यहां से झोली भर कर लौटते हैं और पूरे जीवन मां के भक्त बन जाते हैं.
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