जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश

  


जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश - Shradh Paksha 2022

 


Shradh Paksha 2022 -जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश गुरु माँ निधि श्री माली जी के अनुसार अनंत चतुर्दशी के बाद पूर्णिमा से शुरू होने वाला श्राद्घ पक्ष सर्वपितृ अमावस्या तक रहता है। इसमें पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक के बीच सोलह तिथियों के अनुसार श्राद्घ किया जाता है। अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की शान्ति एवं मोक्ष के लिए किया जाने वाला दान एवं कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। जिसने हमें जीवन दिया, उसके लिए, जिसने हमें जीवन देने वाले को जीवन दिया, उसके लिए तथा जो हमारे कुल एवं वंश का है, उसके लिए। इस प्रकार तीन पीढि़यों तक के लिए किया जाने वाला होम, पिण्डदान तथा तर्पण ही श्राद्धकर्म कहलाता हैं। ऐसी मान्यता है की माता-पिता आदि के निमित्त उनके नाम और गोत्र का उच्चारण कर मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि अर्पित किया जाता है, वह उनको प्राप्त हो जाता है। यदि अपने कर्मों के अनुसार उनको देव योनि प्राप्त होती है तो वह अमृत रूप में उनको प्राप्त होता है। जो श्रद्धा से दिया जाए, उसे श्राद्ध कहते हैं। श्रद्धा और मंत्र के मेल से जो विधि होती है, उसे श्राद्ध कहते हैं। विचारशील पुरुष को चाहिए कि संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को एक दिन पूर्व ही निमंत्रण दे दें, परंतु श्राद्ध के दिन कोई तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारे तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए।  दिवंगत पूर्वजो के प्रति श्रदा व्यक्त करने से जुडा पितृ पक्ष 10 सितम्बर से आरम्भ हो जायेगा |16 दिवसीय पितृ पक्ष में इस बार 17 सितम्बर को श्राद नहीं होगा | भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू हो रहे पित्र पक्ष का समापन 25 सितम्बर को होगा |

जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश - Shradh Paksha 2022

जब पित्तर यह सुनते हैं कि श्राद्धकाल उपस्थित हो गया है तो वे एक-दूसरे का स्मरण करते हुए मनोनय रूप से श्राद्धस्थल पर उपस्थित हो जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में भोजन करते हैं। यह भी कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तब पित्तर अपने पुत्र-पौत्रों के यहाँ आते हैं। शास्त्रों द्वारा जन्म से ही मनुष्य पर लिए तीन प्रकार के ऋण अर्थात कर्तव्य बतलाये गये हैं :-  देवऋण, ऋषिऋण तथा पितृऋण। अतः स्वाध्याय द्वारा ऋषिऋण से, यज्ञों द्वारा देवऋण से तथा संतानोत्पत्ति एवं श्राद्ध (तर्पण, पिण्डदान) द्वारा पितृऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बतलाया गया है। इन तीनों ऋणों से मुक्ति पाये बिना व्यक्ति का पूर्ण विकास एवं कल्याण होना असंभव है।जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश - Shradh Paksha 2022

पितृ पक्ष के 15 दिन में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को सवार सकता है ,क्योंकि इन 15 दिनों में पितृ लोक से हमारे पितृ धरती पर आते है और यदि हम श्राद्ध आदि विधि से उन्हें संतुष्ट कर दे तो श्राद्ध से संतुष्ट पितृ हमे आशीर्वाद देते है ! इन 15 दिनों में यदि हम श्राद आदि क्रियाये ना करे तो हमारे पितृ भूखे ही पितृ लोक को वापिस चले जाते है और हमे श्राप दे देते है जिससे अनेकों प्रकार की विपदाए हमारे जीवन को घेर लेती है और जीवन एक तरह की नीरसता से भर जाता है ! पितरों के रुष्ट हो जाने पर घर में कलेश की स्थिति बन जाती है ! व्यक्ति का अध्यात्मिक विकास रुक जाता है ! पितरों के रुष्ट हो जाने पर घर में प्रेत बाधाऐं उत्पन्न हो जाती है और व्यक्ति का सारा धन बीमारिओं में ही निकल जाता है ! पितरों को संतुष्ट करने के अनेकों उपाय है !

|| उपाय ||

१. यदि हम कौवे की सेवा करे तो हमारे पितृ संतुष्ट होते है !

२. पितृ पक्ष में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करे और उस पाठ का दान अपने गौत्र के पितरों के नाम पर दान करने से पितृ संतुष्ट होते है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है !

३. यदि पितृ पक्ष में गरुड़ पूरण का पाठ किया जाए और पाठ के फल का दान अपने गौत्र के पितरों के नाम पर दान करने से पितृ संतुष्ट होते है और नरक की यातनाओं से बच जाते है एवं मोक्षगामी होते है !

४. पीपल वृक्ष की जड़ में मीठा जल अर्पित करने से और दिया जलाने से भी पितृ संतुष्ट होते है !

५. कुत्तों की सेवा करने और मछलियो को आटा खिलाने से भी पितृ संतुष्ट होते है !

६. यदि व्यक्ति अपने कुलदेवता कुलदेवी या कुलगुरु का पूजन करे तो कुल में उत्पन्न होने वाले सभी पितृ संतुष्ट हो जाते है !

७. यदि देवी भागवत का पाठ किया जाए और पाठ का पुण्य अपने पितरों के लिए दान किया जाए तो भी पितृ संतुष्ट होते है !

ऐसे अनेकों उपाएँ है जिससे पितृ संतुष्ट होते है !

शुभ प्रभात मित्रों नमामि

पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटिशः नमन

श्राद्ध के हवन का विधि-विधान ****

सनातन धर्म की परम्परा के अनुसार प्रत्येक गृहस्थ को पितृगण की तृप्ति के लिए तथा अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। वैदिक परम्परा के अनुसार विधिवत् स्थापित अग्नि में बैदिक मन्त्रों की दी गयी आहुतियां धूम्र और वायु की सहायता से आदित्य मण्डल में जाती हैं। वहां उसके दो भाग हो जाते हैं। पहला भाग सूर्य रश्मियों के द्वारा पितरों के पास पितर लोकों में चला जाता है और दूसरा भाग वर्षा के माध्यम से भूमि पर बरसता है जिससे अन्न, पेड़, पौधे व अन्य वनस्पति पैदा होती है। उनसे सभी प्राणियों का भरण-पोषण होता है। इस प्रकार हवन से एक ओर जहाँ पितरगण तृप्त होते हैं, वहीँ दूसरी ओर जंगल के जीवों का कल्याण होता है।जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश - Shradh Paksha 2022

हवन- विधि

अपने माता-पिता, दादा-दादी या परदादा-परदादी के श्राद्ध के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर मार्जन,आचमन, प्राणायाम कर कुश (एक जंगली पवित्र घास) को धारण कर सर्वप्रथम संकल्प करना चाहिए। उसके बाद भू- संस्कारपूर्वक अग्नि स्थापित कर विधि-विधानसहित अग्नि प्रज्ज्वलित कर, अग्नि का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद पंचोपचार से अग्नि का पूजन कर उसमें चावल, जल, तिल, घी  बूरा या चीनी व सुगन्धित द्रव्यों से शाकल्य की निम्न-लिखित 14 आहुतियां देनी चाहिए। अन्त में हवन करने वाली सुरभी या सुर्वा से हवन की भस्म ग्रहण कर, मस्तक आदि पर लगा कर, गन्ध, अक्षत, पुष्प आदि से अग्नि का पूजन और विसर्जन करें और अन्त में आत्मा की शान्ति के लिए परमात्मा से प्रार्थना करें--

ॐ यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या

तपोश्राद्ध क्रियादिषु।

न्यूनं सम्पूर्णताम् याति

सद्यो वंदेतमच्युतम।।

इस प्रकार विधिवत् हवन करने से पितर प्रसन्न व संतुष्ट होते हैं तथा श्राद्धकर्ता अपने कुल-परिवार का सर्वथा कल्याण करते हैं।

तृप्ति व संतुष्टि के लिए तर्पण व श्राद्ध   ****

पितरों की संतुष्टि के लिए तर्पण किया जाता है--वही श्राद्ध कहलाता है। प्रश्न यह है--हम श्राद्ध क्यों करें ? श्राद्ध न करें तो हर्ज क्या है ?

पितरों के नाम से श्रद्धा पूर्वक किये गए कर्म को श्राद्ध कहते हैं। जिन अकालमृत्यु को प्राप्त या अतृप्त आत्माओं का सम्बन्ध हमारे कुल-परिवार से होता है, उनकी अपने वंशजों से यह अपेक्षा रहती है कि उनकी आने वाली पीढ़ी उनके कल्याण के लिए और आत्मा की शान्ति के लिए कुछ दान-पूण्य, भोजन-वस्त्र, अन्न-जल तर्पण आदि कर साल में एक बार पितृपक्ष में श्राद्धकर्म अवश्य करेगी जिससे उनकी मुक्ति हो जायेगी और एकबार फिर से वे भवचक्र का हिस्सा बन जायेंगे। ऐसा होने से वे न सिर्फ संतुष्ट होते हैं वल्कि कुल-परिवार को आशीर्वाद भी देते हैं।जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश - Shradh Paksha 2022

इसके ठीक विपरीत जिस परिवार में यह श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है, चाहे जाने या अनजाने तो उस परिवार की सुख-समृद्धि, संतुष्टि नष्ट हो जाती है। इसका एकमात्र कारण पितरों का अप्रसन्न और असंतुष्ट होना ही है। जिन पितरों को अपने कुल-परिवार के सदस्यों से श्राद्धकर्म की अपेक्षा रहती है, जिसका वे बेसब्री से इंतजार भी करते हैं और श्राद्धपक्ष में कुल परिवार में आते भी हैं, फिर भी वे भूखे-प्यासे, अतृप्त लौट जाते हैं तो फिर वे परिवार के सदस्यों को सताकर उन्हें संकेत भी करते हैं। यदि फिरभी वे नहीं चेते और उनकी अनदेखी करते रहे तो वे ही उनके ऊपर कहर बन कर टूट पड़ते हैं। फिर जो नुकसान होता है उसकी भरपाई संभव नहीं है। पितरों की बददुआ किसी कुल-परिवार का सुख-चैन तो छीन ही लेती है, साथ ही अनहोनी समय-समय पर घटित होने लगती है जिसकी सारी जिम्मेदारी कुल-परिवार के जिम्मेदार सदस्य की होती है। इसलिए हिन्दू समाज की यह मान्यता और परंपरा है कि श्राद्ध करने से उनके वंशज और परिवार का कल्याण होता है।जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश - Shradh Paksha 2022

हमारे धर्मशास्त्र में श्राद्ध के अनेक भेद बतलाये गए हैं। उनमें से 'मत्स्य पुराण' में तीन, 'यज्ञस्मृति' में पांच तथा

भविष्य पुराण' में बारह प्रकार के श्राद्ध  का उल्लेख मिलता है। ये भेद निम्न हैं--

1. नित्य श्राद्ध:  प्रतिदिन किया जाने वाला तर्पण और भोजन से पहले गौ-ग्रास निकालना 'नित्य श्राद्ध' कहलाता है।

2. नैमित्तिक श्राद्ध:  पितृपक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध 'नैमित्तिक श्राद्ध' कहलाता है।

3. काम्य श्राद्ध:  अपनी अभीष्ट कामना की पूर्ति के लिए किये गए श्राद्ध को 'काम्य श्राद्ध' कहते हैं।

4. वृद्धि श्राद्ध या नान्दीमुख श्राद्ध:  मुंडन, उपनयन एवं विवाह आदि के अवसर पर किया जाय तो 'वृद्धि श्राद्ध' या 'नान्दी मुख श्राद्ध' कहते हैं।

5. पार्वण श्राद्ध:  अमावस्या या पर्व के दिन किया जाने वाला श्राद्ध 'पार्वण श्राद्ध' कहलाता है।

6. सपिण्डन श्राद्ध:  मृत्यु के बाद प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए मृतक पिण्ड का पितरों के पिण्ड में मिलाना 'सपिण्डन श्राद्ध' कहलाता है।

7. गोष्ठी श्राद्ध:  गौशाला में वंश वृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'गोष्ठी श्राद्ध' कहलाता है।

8. शुद्धयर्थश्राद्ध:  प्रायश्चित्त के रूप में अपनी शुद्धि के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना 'शुद्ध्यर्थ श्राद्ध' कहलाता है।

9. कर्मांग श्राद्ध:  गर्भाधान, सीमान्त एवं पुंसवन संस्कार के समय किया जाने वाला श्राद्ध 'कर्मांग श्राद्ध' कहलाता है।

10. दैविक श्राद्ध:  सप्तमी तिथि में हविष्यान्न से देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'दैविक श्राद्ध' कहलाता है।

11. यात्रार्थ श्राद्ध:  तीर्थयात्रा पर जाने से पहले और तीर्थस्थान पर किया जाने वाला 'यात्रार्थ श्राद्ध' कहलाता है।

12. पुष्ट्यर्थ श्राद्ध:  अपने वंश और व्यापार आदि की वृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'पुष्ट्यर्थ श्राद्ध' कहलाता है।

उक्त सभी प्रकार के श्राद्धों के माध्यम से व्यक्ति अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा को अर्पित करता है जिससे प्रसन्न होकर उसके पितर श्राद्धकर्ता को अपने वंशज और उसके परिवार को फलने-फूलने आदि का आशीर्वाद देते हैं।

क्रमशः--

आगे है--नान्दी श्राद्ध तथा सांवत्सरिक श्राद्ध-

श्राद्धकर्म में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है, जैसे :- जिन व्यक्तियों की सामान्य मृत्यु चतुर्दशी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध केवल पितृपक्ष की त्रायोदशी अथवा अमावस्या को किया जाता है। जिन व्यक्तियों की अकाल-मृत्यु (दुर्घटना, सर्पदंश, हत्या, आत्महत्या आदि) हुई हो, उनका श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को ही किया जाता है। सुहागिन स्त्रियों का श्राद्ध केवल नवमी को ही किया जाता है। नवमी तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम है। जिसे माता नवमी भी कहते है। संन्यासी पितृगणों का श्राद्ध केवल द्वादशी को किया जाता है। पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। नाना-नानी का श्राद्ध केवल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है। पितरों के श्राद्ध के लिए ‘गया’ को सर्वोत्तम माना गया है, इसे ‘तीर्थों का प्राण’ तथा ‘पाँचवा धाम’ भी कहते है। माता के श्राद्ध के लिए ‘काठियावाड़’ में ‘सिद्धपुर’ को अत्यन्त फलदायक माना गया है। इस स्थान को ‘मातृगया’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘गया’ में पिता का श्राद्ध करने से पितृऋण से तथा ‘सिद्धपुर’ (काठियावाड़) में माता का श्राद्ध करने से मातृऋण से सदा-सर्वदा के लिए मुक्ति प्राप्त होती है।। श्राद्धकर्म में श्रद्धा, शुद्धता, स्वच्छता एवं पवित्रता पर विशेष ध्यान देना चाहिए, इनके अभाव में श्राद्ध निष्फल हो जाता है। श्राद्धकर्म से पितरों को शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा प्रसन्न एवं तृप्त पितरों के आर्शीवाद से हमें सुख, समृद्धि, सौभाग्य, आरोग्य तथा आनन्द की प्राप्ति होती है।जाने क्या है श्राद्ध पक्ष और केसे करे अपने पितरो को खुश - Shradh Paksha 2022

श्राद्ध में वर्जित कार्य :-

तेल की मालिश नहीं करना चाहिए। इन दिनों में संभोग को वर्जित किया गया है। इन नियमों का पालन न करने पर हमें कई दु:खों को भोगना पड़ता है। इन दिनों खाने में चना, मसूर, काला जीरा, काले उड़द, काला नमक, राई, सरसों आदि वर्जित मानी गई है अत: खाने में इनका प्रयोग ना करें। आप भी अपने पितरो का श्राद्धकर्म अपनी भक्ति एव श्रदा से करे तथा उनकी कृपा प्राप्त करे

दिवंगत पूर्वजो के प्रति श्रद्धा का पर्व पितृपक्ष 10 सितम्बर  से 26 सितम्बर  तक

श्राद्ध की तिथिया

पूर्णिमा श्राद्ध व् प्रतिपदा श्राद्ध – 10 सितम्बर

द्वितीय श्राद  - 11 सितम्बर

तृतीय श्राद – 12 सितम्बर

चतुर्थी  श्राद्ध – 13 सितम्बर

पंचमी श्राद्ध – 14 सितम्बर

षष्टी श्राद्ध – 15 सितम्बर

सप्तमी श्राद्ध  - 16 सितम्बर

अष्टमी श्राद्ध – 18 सितम्बर

नवमी श्राद्ध – 19 सितम्बर

दशमी श्राद्ध – 20 सितम्बर

एकादशी श्राद्ध – 21 सितम्बर

द्वादशी श्राद्ध – 22 सितम्बर

त्रयोदर्शी श्राद्ध – 23 सितम्बर

चतुर्दर्शी श्राद्ध – 24 सितम्बर

अमावस्या श्राद्ध – 25 सितम्बर

मातामह या नाना श्राद्ध – 26 सितम्बर

गुरु माँ निधि श्रीमाली जी ने बताया है की इस बार पितृ पक्ष में 17 सितम्बर श्राद्ध की तिथि नहीं है | इस बार सप्तमी तिथि का श्राद्ध 16 सितम्बर को व् अष्टमी तिथि का श्राद्ध 18 सितम्बर को मनाया जायेगा |

अगर आप भी अपने पूर्वजो के नाम की पूजा तथा पितृदोष निवारण पूजा करवाना चाहते  है   तो संपर्क कीजिये :- 9571122777

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