जानिए गुप्त नवरात्रि के प्रथम दिन मां काली की पूजा का महत्व , पूजन विधि एवं उपाय


 

जानिए गुप्त नवरात्रि के प्रथम दिन मां काली की पूजा का महत्व , पूजन विधि एवं उपाय

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार शास्त्रों में कुल चार नवरात्रि का वर्णन है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं। एक गुप्त नवरात्रि माघ और दूसरी आषाढ़ के महीने में पड़ती है। आज से ही  ही आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि शुरू होने वाली है।  आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 19 जून से हो रही है, जो कि 28 जून को समाप्त होगी। इस गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा-अर्चना की जाती है।  आज से गुप्त नवरात्रि  प्रारंभ हो चुकी है. आज गुप्त नवरात्रि का पहला दिन है. पहले दिन मां शक्ति के स्वरुप मां काली (कालिका) की पूजा अर्चना की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार- मां कालिका कलियुग की जाग्रत देवी मानी जाती हैं. मां को दुष्‍टों का संहार करने वाला माना जाता है. मां काली की पूजा गुप्त तरीके से की जाती है

गुप्त नवरात्री में मां काली की पूजा का महत्व -

दस महाविद्याओं में माँ काली प्रथम रूप है. माँ काली  का स्वरुप अत्यंत विकराल, अभंयकारी और मंगलकारी है. माँ काली का ये स्वरुप असुरों का नाश करने वाला है. यदि कोई व्यक्ति गुप्त नवरात्री के दौरान माँ काली की पूजा करता है तो उसके ऊपर सामने आसुरी शक्तियों का कोई असर नहीं होता हैं. माँ काली की पूजा करने वाले व्यक्ति को रूप, यश, जय की प्राप्ति होती है. समस्त सांसारिक बाधाएं खत्म हो जाती है.  माँ काली ने चंड-मुंड का संहार किया था इसलिए इन्हे चामुण्डा के नाम से भी जाना जाता है. माँ काली अपने गले मुंडमाला धारण करती हैं इनके एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटा हुआ सिर होता है.  

मां दुर्गा ने रक्तबीज नाम के असुर का वध करने के लिए काली का अवतार धारण किया था. दस महाविद्याओं में माँ काली प्रथम देवी है. गुप्त नवरात्रि में प्रथम दिन माँ काली की आराधना की जाती है. जो लोग तंत्र शक्तियां प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें गुप्त नवरात्र के पहले दिन विशेष रूप से मां काली की पूजा करनी चाहिए. इसके अलावा मां काली की आराधना करने से सभी प्रकार की तंत्र बाधाओं से छुटकारा मिलता है. जो लोग अपने शत्रुओं से बहुत परेशान रहते है उन्हें गुप्त नवरात्रि में मां काली की आराधना  करनी चाहिए. ऐसा करने से शत्रु से मुक्ति मिलती है. माँ काली की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है. गुप्त नवरात्रि में दो तरीकों से मां काली की पूजा की जाती है. जो लोग तांत्रिक विद्या हासिल करना चाहते हैं वह लोग इस दिन मां काली की तंत्र विद्या द्वारा उपासना करते हैं. कुछ लोग गुप्त नवरात्र के प्रथम दिन सामान्य तरीके से मां काली आराधना करते हैं. जिससे उनके जीवन के सभी संकट दूर हो जातें हैं. 

माँ काली पूजन विधि 

माता काली की पूजा करने के लिए साधक को स्नान-ध्याान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए और देवी पूजा के लिए स्वच्छ एवं पवित्र स्थान का चयन करने के बाद एक ऊनी आसन पर बैठकर देवी की पूजा करनी चाहिए. यदि आपके पास ऊनी आसन न हो तो आप कंबल पर बैठकर देवी की पूजा कर सकते हैं. गुप्त नवरात्रि पर विधि-विधान से घट स्थापना करके के बाद मां काली की फोटो या प्रतिमा को कलश के बगल में किसी चौकी पर रखें और उनकी चंदन, फल-फूल, धूप-दीप, नैवेद्य आदि को अर्पित करने के बाद मां काली की कथा कहें और उनके मंत्रों का जप करें. मां काली की पूजा के अंत में उनकी आरती करें तथा भूलचूक के लिए माफी मांगें.

मां कालरात्रि का पूजा मंत्र 

मां कालरात्रि की पूजा का बीज मंत्र - क्लीं ऐं श्रीं कालिकायै नम: है. 

वहीं अगर मां कालरात्रि की कृपा से आपको सिद्धि पानी है तो मां के सिद्ध मंत्र- ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम: का जाप करें

मां काली की कथा 

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की  एक बार दारुक नाम के राक्षस ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त कर देवताओं और ब्राह्मणों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को बताया कि इस दुष्ट का संहार एक स्त्री ही कर सकती है। जिसके बाद सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उन्होंने भगवान शिव को सभी बात बताई। 

जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती की और देखा। माता पार्वती इस पर मुस्कुराई और अपना एक अंश भगवान शिव में प्रवाहित कर दिया जिसके बाद भगवान शिव के कंठ से विष से उस अंश ने अपना आकार धारण किया।जिसके बाद भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। उनके इस नेत्र से विकराल रूप वाली मां काली उत्पन्न हुई।मां काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी। मां काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे। 

जिसके बाद मां काली का दारूक और उसकी सेना के साथ भंयकर युद्ध हुआ मां काली ने सभी का वध कर दिया। लेकिन मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ और मां काली के इस क्रोध से संसार भी जलने लगा। जिसके बाद भगवान शिव ने एक बालक रूप धारण किया और शमशान में लेट कर रोने लगे। जिसके बाद मां काली उन्हें देखकर मोहित हो गई। इसके बाद मां काली ने बालक रूपी भगवान शिव को अपने गले से लगाकर अपना दूध पिलाया। जिसके बाद उनका क्रोध भी शांत हो गया।


माँ काली पूजा के नियम

  • यदि आप गुप्त नवरात्रि में मां काली की तंत्र-मंत्र से साधना करने जा रहे हैं तो इसे किसी योग्य गुरु या पंडित के दिशा-निर्देश में करें.

  • गुप्त नवरात्रि में काली की साधना हमेशा स्वच्छता और पवित्रता के साथ करें.

  • मां काली की पूजा में लाल रंग के पुष्प जरूर चढ़ाएं.

  • मां काली की साधना शत्रुओं से बचाव, नौकरी में आ रही बाधा को दूर करने आदि के लिए तो करें लेकिन अपने स्वार्थ के लिए किसी का नुकसान पहुंचाने के लिए बिल्कुल न करें.

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली द्वारा बताये गए गुप्त नवरात्री में माँ काली को प्रसन्न करने के उपाय 

  • गुप्त नवरात्रि के दौरान संतान प्राप्ति के लिए 9 दिन मां दुर्गा को पान का पत्ता अर्पित करें. पूजा के दौरान नन्दगोपगृह जाता यशोदागर्भ सम्भवा ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी मंत्र का जाप करें. मान्यता है इससे जल्द घर में किलकारियां गूंजती हैं.

  • गुप्त नवरात्रि के पहले दिन  एक जटा वाला नारियल लाल कपड़े में बांधें.  इसके ऊपर 21 बार कलावा लपेटें, फिर 7 बार नारियल को सिर से घुमाकर मां दुर्गा की पूजा स्थान पर रख दें. रोजाना सुंदरकांड का पाठ करें. गुप्त नवरात्रि के समापन पर इस नारियल को बहले पानी में प्रवाहित कर दें. मान्यता है इससे नौकरी में लंबे समय से अटके प्रमोशन के योग बनते हैं.

  • गुप्त नवरात्रि  में  मां काली को गुड़ का भोग लगाएं क्योंकि उन्हें गुड़ बहुत प्रिय है। आर्थिक स्थिति को सही करने के लिए गरीबों को गुड़ का दान करना चाहिए। ऐसा करने से मां सारी रुकावटों को दूर करती हैं।

  • ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हलीं ह्रीं खं स्फोटय क्रीं क्रीं क्रीं फट ।।

परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए इस मंत्र का कम से कम 21 बार जाप करना चाहिए।।

  • शत्रु  से पीछा छुड़ाने के लिए:गुप्त नवरात्री के पहले दिन  मां के मंदिर में सुबह और शाम आटे का दो मुंह वाला घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से शत्रु भी मित्र बनने के लिए मजबूर हो जाएगा।


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