नवरात्रि कब है! नवरात्रि कितने प्रकार की होती है

 गुरु माँ निधि श्रीमाली जी के अनुसार ऋतुओं के आधार पर चार नवरात्री होते है पहला चैत्र शुक्ल में बसंत नवरात्रि , दूसरी आषाढ़  शुक्ल में गुप्त नवरात्र, तीसरा आश्विन शुक्ल में शारदीय और चौथा माघ शुक्ल में गुप्त नवरात्र। 9 अप्रैल को चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे है।


नवरात्र का शास्त्रीय पक्ष


नव शक्तिभिः संयुक्त नवरात्र तदुच्यते।
एकैव देव देवेशिः नवद्या परितिष्टता 


नवरात्र में प्रयुक्त 'नव' शब्द नौ संख्या का और 'रात्र' रात का प्रतीक है। तात्पर्य यह है कि 'नत्रांनां रात्रीणां समर्माहार।' नवरात्र का अर्थ नय अहोरात्र में लिया गया है। जो पर्व नौ दिन नौ रात चले, उसे नवरात्र कहते है।

गुरु माँ निधि जी कहते है की आद्य शक्ति की आराधना प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। मार्कण्डेय पुराण में महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ आदि दैत्यों का संहार करने वाली मां दुर्गा की आराधना करने से लौकिक, पारलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती है।


देवी भगवती के अनंत रूप है। कूर्म पुराण के अनुसार मां दुर्गा का स्वरूप अनंत, अच्युत, निर्विकार तथा निर्गुण है। मार्कण्डेय पुराण में उनके विशिष्ट विराट् स्वरूप का दर्शन होता है। नवरात्र में दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। एक- एक तिथि को एक-एक शक्ति की पूजा का विधान है।


पूजा विधि


आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को शुभ  मुहर्त में घंट स्थापना करे |  घट स्थापना के लिए मिट्टी/घांतु का कलश ले | उसे शुद्ध  जल और गंगा जल में घर लें। कैलश के मुख पर लाल वस्त्र या  चुनरी लपेट कर उस पर श्रीफल (नारियल ) रखे और अशोक के पते नारियल के नीचे दबा दे   या उनकी माला बनाकर कलश के मुख पर बांध दे |

जौ बोना

जो व्यक्ति नवरात्री व्रत एव नवदुर्गा सप्तशती का पाठ  करते है ये मिट्टी के पत्र में जौ बौ लें। अंकुरित जौ को बहोत शुभ माना जाता है।

मूर्ति स्थापना

मां भगवती के चित्र/प्रतिमा को स्थापित करने के लिए चौकी ले लें। उस पर लाल वस्त्र बिछाकर मूर्ति को स्थापित करें। यदि आप दुर्गा यंत्र का पूजन भी करते हैं, तो उसे पास में ही स्थापित कर लें। प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराकर चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप- दीप एवं नैवेद्य से अपनी परम्परा अनुसार पूजा प्रारम्भ करें।

आसन

साधक को लाल. या सफेद रंग का गर्म आसन लेना शास्त्रसम्मत बताया है। पूजा, मंत्र-जप हवन आदि आसन पर बैठकर करें।

अखंड ज्योति
नवरात्र साधना के संपूर्ण काल में नौ दिनों तक  अखंड दीपक प्रज्वलित रखें।


पाठ

मां दुर्गा की पूर्जा-अर्चना के लिए अर्गला, कवच, कोलक तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र करने पर ही दुर्गा सप्तशती का फल मिलता है।


नैवेद्य प्रसाद

प्रतिदिन मां दुर्गा को सामर्थ्यानुसार नैवेद्य चढ़ाये ।
विशेषतः हलवे का भोग अर्पण करें।


प्रायः प्रत्येक परिवार में कुल देवी की पूजा होती है। इसलिए अपनी परम्परानुसार कुल देवी की पूजा करें।


कुमारी पूजन

अष्टमी-नवमी को दो से दस वर्ष तक की कन्याओं को अपने घर बुलाकर उनकी पूजा करें और उन्हें भोजन कराएं।


विसर्जन

दशमी के दिन समस्त पूजा-हवन आदि सामग्री का पवित्र जल या जलाशय में विसर्जन करें।


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